क्यों तिरी मोहब्बत में दर्द सह रहा हूँ मैं गर तिरी अदालत में बे-गुनह रहा हूँ मैं ऐ ख़ुदा हिफ़ाज़त है उस की अब तिरे ज़िम्मे इक तिरे भरोसे ही दूर रह रहा हूँ मैं तेरा हो नहीं सकता मैं किसी भी तौर अब तो पर तुझे पता है ना झूट कह रहा हूँ मैं सूरत-ए-नदी की अब मुझ को क्या ज़रूरत है सीरत-ए-नदी में जब यार बह रहा हूँ मैं इल्म गीत ग़ज़लों का मुझ को है नहीं ‘शेखर’ हासिल-ए-मोहब्बत है जो भी कह रहा हूँ मैं