क्यों ये हसरत थी दिल लगाने की थी न हिम्मत अगर निभाने की माँग कर हम से ले लिया होता क्या ज़रूरत थी दिल चुराने की कौन आएगा भूल कर रस्ता दिल को क्यों ज़िद है घर सजाने की अब नहीं आस कुछ रिहाई की बात छेड़ो न आशियाने की रंग तुम भी बदलते हो पल-पल ख़ूब तस्वीर हो ज़माने की बुत हो का'बा हो या कलीसा हो हम को 'आदत है सर झुकाने की तुम ने इंसाफ़ कुछ किया ऐसे गो 'अदालत हो इस ज़माने की क्या मज़ा उन से रूठने का 'सदा' जिन को फ़ुर्सत नहीं मनाने की