लोग कहें दीवाना तुझ को तू समझे तू दाना है या तो 'सदा' तू पागल है या दुनिया पागल-ख़ाना है ख़ुद चाहे समझें न समझें औरों को समझाना है बाँट रहा है ज्ञान जगत को ख़ुद से जो अन-जाना है मंदिर मस्जिद दोनों में से कुछ भी चुनना मुश्किल था शुक्र ख़ुदा का मय-ख़्वारों ने ढूँढ लिया मय-ख़ाना है जग है माया-जाल पियारे कह गए पीर फ़क़ीर गुरु ये धोका पर बारी बारी हर बंदे को खाना है किस को कोसें किस को रोएँ हर जुग में है हुआ यही सच को सूली झूट को झूमर ये दस्तूर पुराना है कोर्ट कचहरी में क्या होगा कौन लिखेगा रपट यहाँ जिस ने क़त्ल कराया उस का हाकिम से याराना है सब को यहाँ इंसाफ़ मिलेगा इक दिन दुनिया सुधरेगी सोच-सोच कर ऐसा ही बस हम को जी बहलाना है शोर मचाने से लोगों की बदलेगी क्या राय 'सदा' आज तलक किसी पागल ने क्या ख़ुद को पागल माना है