लाज़िम है सोज़-ए-इश्क़ का शोला अयाँ न हो जल-बुझिये इस तरह से कि मुतलक़ धुआँ न हो ज़ख़्म-ए-जिगर का वा किसी सूरत वहाँ न हो पैकान-ए-यार इस में जो शक्ल-ए-ज़बाँ न हो अल्लाह रे बे-हिसी कि जो दरिया में ग़र्क़ हों तालाब की तरह कभी पानी रवाँ न हो गुल ख़ंदा-ज़न है चहचहे करती है अंदलीब फैली हुई चमन में कहीं ज़ाफ़राँ न हो भागो यहाँ से ये दिल-ए-नालाँ की है सदा बहके हो यारो ये जरस-ए-कारवाँ न हो हस्ती अदम से है मिरी वहशत की इक शलंग ऐ ज़ुल्फ़-ए-यार पाँव की तू बेड़ियाँ न हो लेना बजाए फ़ातिहा तुर्बत पे नाम-ए-यार मरने पे ये ख़याल है वो बद-गुमाँ न हो नाक़ा चला है नज्द में लैला का बे-महार मजनूँ की बन पड़ेगी अगर सार-बाँ न हो चालों से चर्ख़ की ये मिरा अज़्म है 'सुरूर' इस सरज़मीं पे जाऊँ जहाँ आसमाँ न हो