लाज़िम कहाँ कि सारा जहाँ ख़ुश-लिबास हो मैला बदन पहन के न इतना उदास हो इतना न पास आ कि तुझे ढूँडते फिरें इतना न दूर जा के हमा-वक़्त पास हो इक जू-ए-बे-क़रार हो क्यूँ दिल-कशी तिरी क्यूँ इतनी तिश्ना-लब मिरी आँखों की प्यास हो पहना दे चाँदनी को क़बा अपने जिस्म की उस का बदन भी तेरी तरह बे-लिबास हो आए वो दिन कि किश्त-ए-फ़लक हो हरी-भरी बंजर ज़मीं पे मीलों तलक सब्ज़ घास हो