लब सज़ा बन चुके हैं गिरफ़्तार हूँ मैं तुझे चूमने का गुनहगार हूँ क्या ये क़स्में भी खानी पड़ेंगी मुझे क्या ये काफ़ी नहीं है कि मैं यार हूँ चंद्रमा को ग्रहन लग गया था फ़क़त मुझ को लगता था मैं उस का संसार हूँ ठीक होने का नाटक कहाँ तक करें चारागर को ख़बर है के बीमार हूँ इंतिहा का रहा उम्र-भर शौक़ 'अनन्त' चौंकना क्या अब इस में कि लाचार हूँ