लब से दिल का दिल से लब का राब्ता कोई नहीं हसरतें ही हसरतें हैं मुद्दआ' कोई नहीं हर्फ़-ए-ग़म-ए-ना-पैद है आँखों में नम नापैद है दर्द का सैल-ए-रवाँ है रास्ता कोई नहीं अपने मन का अक्स है अपनी सदा की बाज़गश्त दोस्त दुश्मन आश्ना ना-आश्ना कोई नहीं सब के सब अपने गरेबानों में हैं डूबे हुए गुल से गुल तक रिश्ता-ए-मौज-ए-सबा कोई नहीं हाल-ए-ज़ार ऐसा कि देखे से तरस आने लगे संग-दिल इतने कि होंटों पर दुआ कोई नहीं क्या कोई राकिब नहीं हम में समंद-ए-वक़्त का नक़्श-ए-पा सब हैं तो क्या ज़ंजीर-ए-पा कोई नहीं मैं तो आईना हूँ सब की शक्ल का आईना-दार बज़्म में लेकिन मुझे पहचानता कोई नहीं दिल के डूबे से मिटी दस्त-ए-शनावर की सकत मौज की तुग़्यानियों से डूबता कोई नहीं आँख मीचोगे तो कानों से गुज़र आएगा हुस्न सैल को दीवार-ओ-दर से वास्ता कोई नहीं अर्श की चाहत हो या पाताल का शौक़-ए-सफ़र इब्तिदा की देर है फिर इंतिहा कोई नहीं कारवाँ 'ख़ुर्शीद' जाने किस गुफा में खो गया रौशनी कैसी कि सहरा में सदा कोई नहीं