लबालब दुख से था क़िस्सा हमारा मगर छलका नहीं दरिया हमारा असर उस पर तो कब होना था लेकिन तमाशा बन गया रोना हमारा मगर आने से पहले सोच लो तुम बहुत वीरान है रस्ता हमारा अजब तपती हुई मिट्टी है अपनी उबलता रहता है दरिया हमारा तुम्हारे हक़ में भी अच्छा नहीं है तुम्हारे ग़म में यूँ जीना हमारा उसी को दुख का अंदाज़ा था अपने वही तन्हा सहारा था हमारा