लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे दौर-दौर-ए-जाम-ए-मय जम जम रहे ज़िक्र-ए-क़ुमरी भी जो करते हम रहे उस सही क़ामत का भरते दम रहे दूद-ए-ख़त हो या दुख़ान-ए-ज़ुल्फ़ हो जिस जगह धूनी रमाई रम रहे शोख़ कैसा है अक़ीक़-ए-सुर्ख़ हो ला'ल-ए-लब से रंग में मद्धम रहे ना-तवानी ने बिठाया जिस जगह फिर न उठ्ठे लैस हो कर जम रहे जब मैं रोया बारिश-ए-बाराँ हुई खुल गया मुँह अश्क जिस दम थम रहे 'शाद' पीछा कर के ग़ौल-ए-नफ़्स का राह-ए-हक़ भूले-भटकते हम रहे