क्या ये बुत बैठेंगे ख़ुदा बन कर अल्लाह अल्लाह ऐ बरहमन कर होगा बर्बाद मिस्ल-ए-काग़ज़ बाद सर को खींचा फ़लक पे गर तन कर ख़ंजर-ओ-तेग़ कर गले पे रवाँ फेर कर आँख कज न चितवन कर ऐ तिरी शान हो गया इंसाँ एक मुश्त-ए-ग़ुबार बन-ठन कर पाक दामन है मरियम-ए-सानी चश्म-ए-तर तिफ़्ल-ए-अश्क को जन कर दिल के डसने में है ये काला नाग ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ से बिल न नागन कर तू अगर हड्डियों का माला है इस्म-ए-आज़म की दर्द सुमरन कर है ये छलनी मज़ार-ए-'शाद'-ए-ग़रीब धूप आती है लाश पर छन कर