लबों पर तिश्नगी आँखों में है बरसात का आलम कि तन्हा कैसे गुज़रेगा बता जज़्बात का आलम सफ़र ख़ुशबू बने और रास्ते आसान हो जाएँ निगाहों में समा जाए जो तेरी ज़ात का आलम बुलंदी पर खड़े हो कर मियाँ हैरान से क्यों हो समझ में आ गया शायद अनोखी मात का आलम जुदा होना रग-ए-जाँ से भला आसान ही कब था मिरे हर हर नफ़स में घुल गया सकरात का आलम अगर हैं निय्यतें शफ़्फ़ाफ़ और दिल में है गुंजाइश सुलझ कर क्यूँ नहीं देता ये उलझी बात का आलम मैं उँगली फेरता हूँ जब कभी भीगे से साहिल पर बना देता है तस्वीरें तिरी ज़र्रात का आलम