लबों पर उन के हयात-आफ़रीं हँसी न रही गुलों में रूह सितारों में रौशनी न रही ख़ुदा शनासों की पहचान ही कोई न रही कि सर-कशी भी ब-अंदाज़-ए-सर-कशी न रही फ़साना गर्दिश-ए-दौराँ का नज़्म कर लेते मगर निगाह में उन की वो बरहमी न रही वक़ार-ए-ज़ौक़-ए-तजस्सुस पे हर्फ़ आएगा अगर शरीक-ए-सफ़र अपने गुमरही न रही है अपना सोज़-ए-तबस्सुम शरीक-ए-साज़-ए-चमन असीर-ए-गिर्या-ए-शबनम कोई कली न रही रहे निगाह में आदाब-ए-लग़्ज़िश-ए-उल्फ़त ख़ुदी से दब के कभी अपनी बे-ख़ुदी न रही मिला था मौक़ा-ए-तकमील-ए-दास्तान-ए-हयात जबीन-ए-गुल पे शिकन और खेलती न रही शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसे भी हादसे गुज़रे चराग़ जलते रहे और रौशनी न रही बनाए हम ने 'शिफ़ा' दोस्ती के वो साँचे कि दुश्मनों को तमन्ना-ए-दुश्मनी न रही