ख़िरद की राह से दीवानगी तक बात क्यों पहुँचे शुऊर-ए-ग़म की आशुफ़्ता-सरी तक बात क्यों पहुँचे वक़ार-ए-इश्क़ की ग़म या ख़ुशी तक बात क्यों पहुँचे हज़ारों और भी दिल हैं उसी तक बात क्यों पहुँचे अगर दामन बचे रहबर की उलझन से तो अच्छा है ख़राब-ए-जुस्तुजू की गुमरही तक बात क्यों पहुँचे निगाह-ए-दिल के परतव से करें शाम-ओ-सहर रौशन मह-ओ-ख़ुर्शीद की ताबिंदगी तक बात क्यों पहुँचे मोहब्बत की कहानी हो कि नफ़रत की हिकायत हो किसी की भी सही लेकिन किसी तक बात क्यों पहुँचे निखरना है तो निखरे अपने ही आईने में फ़ितरत किसी रुख़ से निगाह-ए-आदमी तक बात क्यों पहुँचे मोहब्बत ख़ुद ही हल कर ले मोहब्बत के मुअम्मों को उलझने को ख़ुदी-ओ-बे-ख़ुदी तक बात क्यों पहुँचे समो दें हाल के दिल में जो मुस्तक़बिल की धड़कन को तो बढ़ कर इस सदी से उस सदी तक बात क्यों पहुँचे सुकूत-ए-गुल ही आईना बना दे राज़-ए-गुलशन को 'शिफ़ा' अपने मज़ाक़-ए-शाइ'री तक बात क्यों पहुँचे