लबों पे अपने गुलाबों की ताज़गी रखना मगर मिज़ाज हक़ीक़त में आतिशी रखना कभी कभी शब-ए-हालात के अँधेरों में बहुत ज़रूरी है आँखों को शबनमी रखना यही मज़ाक़ बहुत उम्दा है जवानी में मकान-ए-शौक़ में मेहमान अजनबी रखना बहुत ख़ुलूस से अहबाब मुझ से कहते हैं ज़बाँ बयाँ में ये अंदाज़ दाइमी रखना सबक़ मिला यही अस्लाफ़ से मुझे 'अनवर' ग़ज़ल में हुस्न-ओ-लताफ़त की चाशनी रखना