लबों से आँख से रुख़्सार से क्या क्या नहीं करता

लबों से आँख से रुख़्सार से क्या क्या नहीं करता
वो जादू कौन सा है जो कि वो चेहरा नहीं करता

मैं सारे काग़ज़ों पे एक मिस्रा लिख के रक्खूँगा
वो जब तक आ के मेरे शे'र को पूरा नहीं करता

फ़सादों में जो शामिल हैं वो मोहरे हैं सियासत के
ख़ुद अपने आप कोई भी यहाँ दंगा नहीं करता

हवाओं में नगर की इस क़दर कुछ ज़हर फैला है
न गुल देते हैं ख़ुशबू पेड़ भी साया नहीं करता

जो लिखता हूँ वो होता है फ़क़त तस्कीन की ख़ातिर
मैं अपनी शाइ'री का शहर में सौदा नहीं करता

मुझे मंज़ूर है बीमार रहना उम्र-भर यूँ ही
वो जब तक हाथ से छू कर मुझे अच्छा नहीं करता

चलो माना कि अपनी अहमियत है 'शोख़' दौलत की
ज़माने में मगर हर काम ही पैसा नहीं करता


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