लड़खड़ाते हुए भी और सँभलते हुए भी उस के दर पर ही गए ख़्वाब में चलते हुए भी इश्क़ आसार थी हर राहगुज़र उस की थी हम भटक सकते न थे राह बदलते हुए भी इश्क़ है इश्क़ ब-हर-हाल नुमू पाएगा या'नी जलते हुए भी और पिघलते हुए भी ज़िंदगी तेरे फ़क़त एक तबस्सुम के लिए हम कि हँसते ही रहे दर्द में ढलते हुए भी एक मुद्दत से हैं हम इश्क़ में आवारा ब-कार या'नी इक उम्र हुई फूलते-फलते हुए भी सिलसिला तुझ से ही था तेरे तलब-गारों का बर्फ़ होते हुए भी आग में जलते हुए भी बिन तिरे ऐसा अंधेरा था मिरे अंदर यार डर लगा इश्क़ के सूरज को निकलते हुए भी