लड़कियाँ घर में निखर आई हैं फूलों की तरह वक़्त ठहरा है मगर सूखी बबूलों की तरह दिल तो कहता है कि हर हाथ पे बै'अत कर लें लोग यूँ राह में मिलते हैं रसूलों की तरह छत को थामे रहो इस शहर में इंसान अभी सर उठाए हुए फिरते हैं बगूलों की तरह तेरी शर्तों पे मुझे ज़िंदगी मंज़ूर नहीं मैं ने चाहा है तुझे अपने उसूलों की तरह देख लेना मिरी तस्वीर को हसरत से सही याद आऊँ जो कभी मैं तुझे फूलों की तरह कल की तारीख़ तुम्हें ऐसी सज़ा देगी 'ज़फ़र' घर में लटका दिए जाओगे मक़ूलों की तरह