लड़ता हूँ भँवर से अभी डूबा तो नहीं हूँ सागर में समा जाऊँ वो क़तरा तो नहीं हूँ मैं अपनी तरह हूँ तिरे जैसा तो नहीं हूँ बाज़ार में बिकता हुआ सौदा तो नहीं हूँ अक्कास है आईना अभी मेरी अना का टूटा हूँ मगर टूट के बिखरा तो नहीं हूँ फिर से इसी मैदान में आऊँगा पलट कर कुछ पीछे सरक आया हूँ हारा तो नहीं हूँ मैं ख़्वाब भी देखूँ तो ख़फ़ा रहते हैं कुछ लोग लोगो मैं तुम्हें ख़्वाब दिखाता तो नहीं हूँ कुछ देर को दम ले लो मिरे पास तो आओ गिरती हुई दीवार का साया तो नहीं हूँ क्यों इतने ख़फ़ा हो मिरी इतनी सी ख़ता पर इंसान हूँ मैं कोई फ़रिश्ता तो नहीं हूँ सर पर मिरे बोसीदा सी टोपी है मिरी है मैं ताज सा दरबार में सजता तो नहीं हूँ