मौजों का बरताव दिखाऊँ देखोगे अपनी टूटी नाव दिखाऊँ देखोगे कोई भी रुत हो शाख़ें फूलती रहती हैं अपना ताज़ा घाव दिखाऊँ देखोगे चाँद से चेहरे पर हैं कैसे कैसे दाग़ आँचल तो सरकाओ दिखाऊँ देखोगे रात के सपने दिन भर ख़ून उगलते हैं धूप चढ़े आ जाओ दिखाऊँ देखोगे सजी सजाई संवरी सिमटी ज़ुल्फ़ों में कितना है बिखराव दिखाऊँ देखोगे पस्पाई है हार नहीं है ज़िंदा हूँ अपना आख़िरी दाव दिखाऊँ देखोगे अब तक देश की मिट्टी मुझ से लिपटी है क्या होगा अलगाव दिखाऊँ देखोगे