लफ़्ज़ जब कोई न हाथ आया मआनी के लिए क्या मज़े हम ने ज़बान-ए-बे-ज़बानी के लिए ये दो-राहा है चलो तुम रंग-ओ-बू की खोज में हम चले सहरा-ए-दिल की बाग़बानी के लिए ज़िंदगी अपनी थी गोया लम्हा-ए-फ़ुर्क़त का तूल कुछ मज़े हम ने भी उम्र-ए-जावेदानी के लिए मैं भला ठंडी हवा से क्या उलझता चुप रहा फूल की ख़ुश-बू बहुत थी सरगिरानी के लिए टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए राख अरमानों की गीली लकड़ियाँ एहसास की हम को ये सामाँ मिले शोला-बयानी के लिए शम्अ हो फ़ानूस से बाहर तो गुल हो जाएगी बंदिश-ए-अल्फ़ाज़ मत तोड़ो मआनी के लिए दो किनारे हों तो सैल-ए-ज़िंदगी दरिया बने एक हद लाज़िम है पानी की रवानी के लिए आज क्यूँ चुप चुप हो 'बाक़र' तुम कभी मशहूर थे दोस्तों यारों में अपनी ख़ुश-बयानी के लिए