उसी किनारा-ए-हैरत-सरा को जाता हूँ मैं इक सवार हूँ कोह-ए-निदा को जाता हूँ रमीदगी का बयाबाँ है और बे-ख़ोर-ओ-ख़्वाब ग़ुबार करता सुकूत ओ सदा को जाता हूँ क़रीब ही किसी ख़ेमे से आग पूछती है कि इस शिकोह से किस क़र्तबा को जाता हूँ हज़र कि दजला-ए-दुश्वार पर क़दम रखता शिकार-गाह-ए-फ़ुरात-ओ-फ़ना को जाता हूँ कहाँ गए वो ख़ुदायान-ए-दिरहम-ओ-दीनार कि इक दफ़ीना-ए-दश्त-ए-बला को जाता हूँ सफ़ारत-ए-हद-ए-हैरानगी पे हूँ मामूर निगार-ख़ाना-ए-हुस्न-ओ-अदा को जाता हूँ वो दिन भी आए कि इंकार कर सकूँ 'सरवत' अभी तो माबद-ए-हमद-ओ-सना को जाता हूँ