लफ़्ज़-ओ-मा'नी के जाल बुनता हूँ कब से ख़्वाब-ओ-ख़याल बुनता हूँ बहर-तस्ख़ीर-ए-काएनात-ए-लतीफ़ फ़न का हुस्न-ओ-जमाल बुनता हूँ है क़लम जो मिरा रफ़ीक़-ए-मुदाम उस का जाह-ओ-जमाल बुनता हूँ ता रहे आबरू-ए-कार-ए-जुनूँ ख़ूँ-शुदा दिल का हाल बुनता हूँ ताने-बाने हयात के हर रोज़ बस-कि बे-क़ील-ओ-क़ाल बुनता हूँ जब से देखा है मौसमों का ज़वाल मंज़र-ए-बर्शगाल बुनता हूँ लज़्ज़त-ए-दर्द ता जवान रहे आरज़ू-ए-विसाल बुनता हूँ किर्म-ए-रेशम न मकड़ियों की मिसाल मैं बया की मिसाल बुनता हूँ