लफ़्ज़ों का अम्बार लगाया By Ghazal << रौशनी हो न सकी शाम के हंग... कभी जो नूर का मज़हर रहा ह... >> लफ़्ज़ों का अम्बार लगाया लेकिन बात नहीं कह पाया मुझ को तो इस बात का दुख है उस ने भी मुझ को समझाया और हम से क्या उठ सकता था हम ने नुक्ता एक उठाया तूफ़ाँ आए बारिश आई दरिया भी मेरे घर आया 'मज़हर' उस की नींद उड़ा दी हम ने जिस को ख़्वाब दिखाया Share on: