रौशनी हो न सकी शाम के हंगाम के साथ और हम दीप जलाते रहे हर शाम के साथ दूर बढ़ता ही गया हसरत-ए-नाकाम के साथ दिल में इक टीस उठी आप के हंगाम के साथ आप ने पुर्सिश-ए-ग़म का भी तकल्लुफ़ न किया दिल में हम जलते रहे हसरत-ए-नाकाम के साथ जाने क्यूँ आज मिरे इश्क़ की तश्हीर हुई हर ज़बाँ पर है मिरा नाम तेरे नाम के साथ दौर-ए-मय ख़त्म हुआ शम्अ का दिल बैठ गया रौनक़-ए-बज़्म गई साक़ी-ए-गुलफ़ाम के साथ वक़्त की बात है क्या वक़्त गुज़र जाएगा और कुछ देर चलो गर्दिश-ए-अय्याम के साथ मंज़िल-ए-इश्क़ में क्या काम था उन का 'हमदम' थक के जो बैठ गए राह में आराम के साथ