लफ़्ज़ों कि वसीले से बयाँ होने से पहले आसान था ये काम गिराँ होने से पहले तख़्लीक़ ने छीना है मिरा हुस्न भी मुझ से इक राज़ था मैं मेरे अयाँ होने से पहले किस तरह की बीनाई थी इन आँखों में जाने कुछ भी न दिखा जिन को धुआँ होने से पहले सोचा तो बहुत पर कोई मा'नी नहीं निकले क्या मेरी नहीं थी मिरी हाँ होने से पहले ये इश्क़ तो अब आ के मिरी जान हुआ है नासूर-ए-जिगर था रग-ए-जाँ होने से पहले हम जैसे नमाज़ी तुम्हें ढूँडे न मिलेंगे पढ़ते हों नमाज़ें जो अज़ाँ होने से पहले हैं सारे फ़सादात ज़बानों का नतीजा ख़ामोश था इंसान ज़बाँ होने से पहले मैं सोचता रहता हूँ ब-हर-हाल कि क्या था आँखों में तिरी मेरा जहाँ होने से पहले