लफ़्ज़ों को सजा कर जो कहानी लिखना हो ज़िक्र लहू का भी तो पानी लिखना अब अक्स-ए-मोहब्बत भी हुआ है कमयाब इस दौर में है कैसी गिरानी लिखना गो याद है अब तक मुझे ग़म का मौसम पर ठीक नहीं दिल की कहानी लिखना रफ़्तार-ए-हवा तेज़ हुई है कि नहीं ये देख के पानी की रवानी लिखना पीरी के नगर में तो है कोहराम बपा किस हाल में है शहर-ए-जवानी लिखना गुज़रे हुए दिन का हो अगर ज़िक्र 'सदफ़' गुज़री है जो इक शाम सुहानी लिखना