लगा हूँ बोलने तो बड़बड़ा रहा हूँ मैं ख़मोश रहने की क़ीमत चुका रहा हूँ मैं हर एक शख़्स तिरा रिश्ता-दार लगता है हर एक शख़्स को ख़ातिर में ला रहा हूँ मैं तलाश कर के नए ज़ाविए मोहब्बत के कई दिलों को धड़कना सिखा रहा हूँ मैं ज़रूरतन कभी क़ीमत गिराई थी अपनी नतीजतन अब अज़िय्यत उठा रहा हूँ मैं दर-अस्ल अपने गरेबाँ का पास है मुझ को ये हर किसी से जो दामन बचा रहा हूँ मैं मैं रख रहा हूँ बहर-हाल अपने नाम की लाज शिकस्ता-दिल हूँ मगर मुस्कुरा रहा हूँ मैं