पहचान में न आए थे इतने भरे हुए हम ख़्वाहिशों के मलबे में दब कर मरे हुए ऐ शख़्स तू ने ग़ौर से देखा नहीं हमें हम लोग तो वही हैं तिरे रद्द करे हुए पी पी के भी वो तुझ को न आया बहार पर हम हैं कि देख देख के तुझ को हरे हुए वो ख़ुश-नसीब दिल में सजाया गया उसे हम रह गए जहाँ के वहीं पर धरे हुए बैठे हुए हैं सहम के बज़्म-ए-जहाँ में हम करतूत-ए-अहल-ए-बज़्म-ए-जहाँ से डरे हुए