लगा के नक़्ब किसी रोज़ मार सकते हैं पुराने दोस्त नया रूप धार सकते हैं हम अपने लफ़्ज़ों में सूरत-गरी के माहिर हैं किसी भी ज़ेहन में मंज़र उतार सकते हैं ब-ज़िद न हो कि तिरी पैरवी ज़रूरी है हम अपने आप को बेहतर सुधार सकते हैं वो एक लम्हा कि जिस में मिले थे हम दोनों उस एक लम्हे में सदियाँ गुज़ार सकते हैं हमारी आँख में जादू भरा समुंदर है हम उस का अक्स नज़र से निथार सकते हैं