लगा मजनूँ को ज़हर-ए-इश्क़ क्या आब-ए-बक़ा हो कर वो ज़िंदा हो गया गोया मोहब्बत में फ़ना हो कर बने थे मेहमाँ आग़ाज़-ए-उल्फ़त में मिरे दिल में मकीन-ए-मुस्तक़िल अब बन गए शीरीं-अदा हो कर मिटाते जो रहे मुझ को मुजस्सम ज़ुल्म बन बन कर उन्हीं के दिल पे मैं उभरा किया नक़्श-ए-वफ़ा हो कर उन्हीं को जल्वा-रेज़ी बन गई थी चाँदनी ग़म की उफ़ुक़ पे दिल की वो चमका किए माह-ए-अज़ा हो कर कुछ ऐसी थी कशिश मुझ में ख़िराज-ए-हुस्न भी पाया हुआ मशहूर मैं इश्क़-ओ-मोहब्बत का ख़ुदा हो कर ठिकाना याद-ए-माज़ी का अगर है तो मिरा दिल है कहाँ पर जाएँगी 'सरताज' वो दिल से जुदा हो कर