लाग़र हैं जिस्म रंग हैं काले पड़े हुए बालों पे गर्द पाँव में छाले पड़े हुए इस माअ'रके में इश्क़ बेचारा करेगा क्या ख़ुद हुस्न को हैं जान के लाले पड़े हुए ये जो भी हो बहार नहीं है जनाब-ए-मन किस वहम में हैं देखने वाले पड़े हुए इस दहर की कुशादा-दरी पर न जाइए अंदर क़दम क़दम पे हैं ताले पड़े हुए शीशे के इक गिलास में नर्गिस के फूल हैं इक मेज़ पर हैं चंद रिसाले पड़े हुए