लगे ख़दंग जब उस नाला-ए-सहर का सा फ़लक का हाल न हो क्या मिरे जिगर का सा न जाऊँगा कभी जन्नत में मैं न जाऊँगा अगर न होवेगा नक़्शा तुम्हारे घर का सा करे न ख़ाना-ख़राबी तिरी नदामत-ए-जौर कि आब-ए-शर्म में है जोश चश्म-ए-तर का सा ये जोश यास तो देखो कि अपने क़त्ल के वक़्त दुआ-ए-वस्ल न की वक़्त था असर का सा लगे उन आँखों से हर-वक़्त ऐ दिल-ए-सद-चाक तिरा न रुत्बा हुआ क्यूँ शिगाफ़-ए-दर का सा ज़रा हो गर्मी-ए-सोहबत तो ख़ाक कर दे चर्ख़ मिरा सुरूर है गुल-ख़ंदा-ए-शरर का सा ये ना-तवाँ हूँ कि हूँ और नज़र नहीं आता मिरा भी हाल हुआ तेरी ही कमर का सा जुनून के जोश से बेगाना-वार हैं अहबाब हमारा हाल वतन में हुआ सफ़र का सा ख़बर नहीं कि उसे क्या हुआ पर इस दर पर निशान-ए-पा नज़र आता है नामा-बर का सा दिल ऐसे शोख़ को 'मोमिन' ने दे दिया कि वो है मुहिब हुसैन का और दिल रखे शिमर का सा