लगी है चोट जो दिल में उभर आई तो क्या होगा मोहब्बत में हुई जो उन की रुस्वाई तो क्या होगा हमारी बे-कसी पर आ रही है क्यों हँसी तुम को तुम्हारी इस हँसी से आँख भर आई तो क्या होगा किए लेता हूँ तौबा तेरे कहने से मैं ऐ वाइज़ मगर चारों तरफ़ काली घटा छाई तो क्या होगा समझ कर संग-दिल जिस को निगाहें फेर लीं मैं ने अगर क़िस्मत उसी पत्थर से टकराई तो क्या होगा मुनासिब है तुम्हें 'इक़बाल' उन से दूर ही रहना कोई सूरत जुदाई की निकल आई तो क्या होगा