लगी है गश्त करने ये ख़बर आहिस्ता आहिस्ता कमर कसने लगा है फ़ित्ना-गर आहिस्ता आहिस्ता कुतर डालो उसे जितना भी तुम सोने की क़ैंची से परिंदे का निकल आता है पर आहिस्ता आहिस्ता डुबो कर मंचली कश्ती को मौजों ने कहा हँस कर किया जाता है पानी में सफ़र आहिस्ता आहिस्ता तिलिस्मी बाँसुरी नादान बच्चों को न देना तुम उजड़ जाएगा मासूमों का घर आहिस्ता आहिस्ता सफ़र की लज़्ज़तें क्या हैं सफ़र के पेच-ओ-ख़म क्या हैं समझ जाएगा अपना हम-सफ़र आहिस्ता आहिस्ता कलाम-ए-नर्म-ओ-नाज़ुक को बनाना अपना शेवा तुम उतर जाएगा सीने में 'असर' आहिस्ता आहिस्ता