लगता है वो आज ख़्वाब जैसा इक शख़्स खुली किताब जैसा क्या इस में है मौज-ए-आब जैसा बे-लम्स है वो सराब जैसा हर शख़्स पे साँप रेंगता है है ज़ोर-ए-हवस अज़ाब जैसा हर शख़्स को रंज-ए-ना-तमामी क़िस्से के अधूरे बाब जैसा बातों में है उस की ज़हर थोड़ा थोड़ा सा मज़ा शराब जैसा मैं अक्स हूँ और आईना वो रिश्ता है सराब ओ आब जैसा