लग़्ज़िश-ए-पा में फ़साने कितने तय हुए पल में ज़माने कितने कोई गाहक न मिला वा'दों का हो गए लोग सियाने कितने मैं तलब था सर-ए-दरबार-ए-जफ़ा मिल गए यार पुराने कितने आप को काम बहुत दिन छोटे जी न चाहे तो बहाने कितने अब तो सद-चाक हैं गुल के पर्दे राज़ खोले हैं सबा ने कितने मैं न पहचान सका आज उन्हें बन गए इस पे फ़साने कितने