तूर पर क्या मुनहसिर है जिस तरफ़ जाता हूँ मैं

तूर पर क्या मुनहसिर है जिस तरफ़ जाता हूँ मैं
तेरे जल्वे की झलक हर चीज़ में पाता हूँ मैं

आलम-ए-ग़ुर्बत में तन्हाई से घबराता हूँ मैं
याद-ए-अहबाब-ए-वतन से दिल को बहलाता हूँ मैं

हाए मस्ती में नहीं रहता ज़बाँ पर इख़्तियार
बातों बातों में न कहने की भी कह जाता हूँ मैं

ऐ अदम के जाने वालो कोई दम की देर है
मुस्तइद हूँ मैं भी आने के लिए आता हूँ मैं

मंज़िल-ए-मक़्सूद तक पहुँचूँ यही धुन है मुझे
दम नहीं लेता कहीं बढ़ता चला जाता हूँ मैं

मुख़्तसर रूदाद है ये बे-क़रारी की मिरी
ख़ुद तड़प कर देखने वालों को तड़पाता हूँ मैं

क्या किसी का हुस्न है ग़ारत-गर-ए-ताब-ओ-तवाँ
देखते ही इक झलक बेहोश हो जाता हूँ मैं

मेरी हस्ती उन की महफ़िल में गराँ-ख़ातिर नहीं
सूरत-ए-बाद-ए-सबा जाता हूँ मैं आता हूँ मैं

दे रहे हैं क्या मुझे जीने के ता'ने बार बार
ना-मुनासिब है मिरा जीना तो मर जाता हूँ मैं

अहल-ए-महफ़िल को सुनाता हूँ मज़ामीन-ए-बहार
तब-ए-रंगीं के ज़रीये फूल बरसाता हूँ मैं

गरचे क़तरा था मगर दरिया में मिलने के सिवा
मौज बन कर सत्ह पर दरिया की लहराता हूँ मैं

बार-ए-ख़ातिर है अगर महफ़िल में मेरा बैठना
कैसी महफ़िल लो ज़माने से उठा जाता हूँ मैं

दर-हक़ीक़त मेरे हक़ में मौत का पैग़ाम था
उन का ये कहना ख़ुदा-हाफ़िज़ तिरा जाता हूँ मैं

नाख़ुन-ए-तदबीर से तक़दीर का लेता हूँ काम
अपनी हर उलझी हुई गुत्थी को सुलझाता हूँ मैं

मेरी इस्तिदआ पे मुझ को टालने के वास्ते
कह दिया ज़ालिम ने अच्छा तुम चलो आता हूँ मैं

क़ौम पर हो कर तसद्दुक़ क़ौम पर हो कर निसार
ग़ाज़ियान-ए-क़ौम की तारीख़ दोहराता हूँ मैं

क्यूँ न हो 'साबिर' मिरे शेर-ओ-सुख़न में पुख़्तगी
मो'तक़िद जब हज़रत-ए-'नासिख़' का कहलाता हूँ मैं


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