लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे फिर न टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे हर घड़ी जल्वा-ए-जानाना ख़ुदा ख़ैर करे तेरा दिल है कि सनम-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे लोग कर डालें न ख़ुद अपने जिगर के टुकड़े बे-नक़ाब उन का चले आना ख़ुदा ख़ैर करे दिल की बात उन से अभी कह तो गए हो लेकिन कोई बन जाए न अफ़्साना ख़ुदा ख़ैर करे शम्अ' बेचैन है बदनाम न हो जाऊँ कहीं पर जला बैठा है परवाना ख़ुदा ख़ैर करे कौन गुज़रेगा तिरे दार-ओ-रसन से हंस कर ग़म है जाने कहाँ दीवाना ख़ुदा ख़ैर करे पाँव उठते ही नहीं 'शौक़' जबीं है बेताब सामने है दर-ए-जानाना ख़ुदा ख़ैर करे