लहजे का रस हँसी की धनक छोड़ कर गया वो जाते जाते दिल में कसक छोड़ कर गया मौज-ए-हवा-ए-गुल सा वो गुज़रा था एक बार फिर भी मशाम-ए-जाँ में महक छोड़ कर गया आया था पिछली रात दबे पाँव मेरे घर पाज़ेब की रगों में झनक छोड़ कर गया लर्ज़ा गिरफ़्त-ए-लम्स की लज़्ज़त से बार बार बाँहों में शाख़-ए-गुल की लचक छोड़ कर गया आया था शहर-ए-गुल से बुलावा मिरे लिए ज़िंदाँ में बेड़ियों की छनक छोड़ कर गया था देखना कुछ अपना तिलिस्म-ए-हुनर उसे बाग़-ए-बहिश्त ओ हूर ओ मलक छोड़ कर गया आवारा कू-ब-कू ये उसे ढूँढती फिरे पा-ए-हवा में कैसी सनक छोड़ कर गया हँसते थे ज़ख़्म और भी खा खा के ज़र्ब-ए-संग राहों में फूल दूर तलक छोड़ कर गया हाथों में दे के खींच लीं रेशम-कलाइयाँ कमरे में चूड़ियों की खनक छोड़ कर गया आँखें न उस की बार-ए-नदामत से उठ सकीं ज़ख़्मों पे मेरे और नमक छोड़ कर गया पलकों पे जुगनुओं का बसेरा है वक़्त-ए-शाम 'अंजुम' मैं पानियों में चमक छोड़ कर गया