लहजे को अपने शहद के जैसा बना लिया उस ने तमाम शहर को अपना बना लिया वो भी किसी के साथ अब अपने सफ़र में हैं हम ने भी उन की याद को रस्ता बना लिया बच्चों के आँसूओं में अना ग़र्क़ हो गई हाथों को एक बाप ने कासा बना लिया ऊँचा मकान बीवी के ज़ेवर ये गाड़ियाँ तुम ने ज़मीर बेच के क्या क्या बना लिया दरकार शक्ल प्यार की आँखों को थी 'रतन' काग़ज़ पे हम ने हिन्द का नक़्शा बना लिया