लगे हैं साल कई बादलों को आते हुए दरख़्त सूख गए धूप में नहाते हुए सफ़र ये इश्क़ का दुश्वार हो गया कितना मैं खो गया हूँ उसे रास्ता बताते हुए ऐ काश नींद को कोई मिरा पता दे दे तमाम ख़्वाब हैं आँखों में कसमसाते हुए है इख़्तियार उदासी का इस क़दर मुझ पर मैं रो पड़ा हूँ कई बार मुस्कुराते हुए न जाने किस तरह उस ने ग़ज़ल कही होगी मिरा तो दम सा निकलता है गुनगुनाते हुए