लहू हमारी जबीं का किसी के चेहरे पर ये रूप-रस भी सही ज़िंदगी के चेहरे पर अभी ये ज़ख़्म-ए-मसर्रत है ना-शगुफ़्ता सा छिड़क दो मेरे कुछ आँसू हँसी के चेहरे पर नवा की गर्द हूँ मुझ को समेट कर ले जा बिखर न जाऊँ कहीं ख़ामुशी के चेहरे पर इस इंक़िलाब पे किस की नज़र गई होगी ग़मों की धूप खिली है ख़ुशी के चेहरे पर हज़ीमतों के किस अम्बोह में हैं गुम हम लोग कोई वक़ार नहीं आदमी के चेहरे पर ख़राश-ए-दर्द का आईना हूँ मुझे देखो ये बाँकपन भी कहाँ है किसी के चेहरे पर बहुत हरीस हैं दीदा-वरान-ए-चेहरा 'फ़ज़ा' नक़ाब डाल के चल आगही के चेहरे पर