लहू का एक छलकता हुआ अयाग़ लिए हयात आई है महरूमियों का दाग़ लिए गुज़र गए हैं यूँही जादा-ए-शबाब से हम फ़सुर्दा ज़ेहन लिए ग़म-ज़दा दिमाग़ लिए हर इक जबीं पे तमव्वुज है सोज़िश-ए-दिल का हर इक निगाह है यक हसरत-ए-फ़राग़ लिए चले हैं ज़ुल्मत-ओ-हर-सैल-ए-बाद की ज़द पर जुनूँ-सिफ़ात भड़कते हुए चराग़ लिए