लहू में डूबी हुई शाम मेरी ज़ात-नुमा ग़मों का सैल-ए-रवाँ फिर हुआ सबात-नुमा चलो उसी को गले से लगाएँ प्यार करें वो एक मर्ग-ए-मुसलसल कि है हयात-नुमा अजीब राह पे लाए गए हैं लोग जहाँ हुजूम-ए-कैफ़ भी लगता है हादसात-नुमा कोई मक़ाम नहीं अब क़रार-ए-जाँ का मक़ाम कोई भी लम्हा नहीं लम्हा-ए-नजात-नुमा 'शुऐब' हम को भी मिल जाए वो पनाह जहाँ ग़मों की धूप भी हो साया-ए-नशात-नुमा