मस्लहत थी चुप रहा वो दर्द का तन्हा शजर लोग कब सुनते अगर कुछ बोलता तन्हा शजर क्या ख़बर मौज-ए-हवा ने चुपके से क्या कह दिया देख कर मुझ को बहुत रोता रहा तन्हा शजर जंगलों से दूर इक वीरान वादी के क़रीब कारवान-ए-दर्द से क्या कह गया तन्हा शजर आओ साए में मिरे आवाज़ उस ने दी मगर देख कर तन्हा मुझे फिर चुप रहा तन्हा शजर कुछ अजब शय थी मिरी उम्र-ए-गुरेज़ाँ भी 'शुऐब' मेरा क़िस्सा देर तक कहता रहा तन्हा शजर