लहू में डूबा हुआ पैरहन चमकता है सुलगती रेत पर इक गुल-बदन चमकता है सितारे बुझते चले जा रहे हैं ख़ेमों में बस इक चराग़ सर-ए-अंजुमन चमकता है ज़ईफ़ चुन तो रहा है जवान लाशों को मगर निगाह में इक बाँकपन चमकता है ये कैसे फूल झड़े शीर-ख़ार होंटों से कि जिन के नूर से सारा चमन चमकता है ये कौन माह-ए-मुनव्वर असीर है 'शहज़ाद' ये किस का हल्क़ा-ए-तौक़-ओ-रसन चमकता है