नफ़्स-ए-सग-ए-पलीद को गर अपने मारिए मानिंद-ए-शेर दश्त-ए-जहाँ में डकारिए उस गुल को जोश-ए-गुल में ये कह कर उभारिए गुलशन में अंदलीब को चल कर पुकारिए फिर मुर्ग़-ए-दिल को फाँसिए फिर जाल मारिए फिर हो सके तो आप से गेसू सँवारिए पीरी में कैफ़-ए-इश्क़ से तौबा तो कीजिए मंज़िल रही है थोड़ी सी हिम्मत न हारिए गिर्दाब-ए-बहर-ए-इश्क़ के चक्कर हैं रात दिन कौन आश्ना-ए-हाल है किस को पुकारिए दिल दे के जौर-ओ-ज़ुल्म का शिकवा न कीजिए दो दिन की ज़िंदगी किसी ढब से गुज़ारिए अहल-ए-हवस की दहर में मिट्टी ख़राब है गलियों में ख़ाक छान रही हैं न्यारिये मानिंद-ए-ज़ुल्फ़ ग़ैर को क्यूँ सर चढ़ाइए आँखों से शक्ल-ए-अश्क के इस को उतारिए पैदा करें असर जो दुर-ए-अश्क नासेहो उन मोतियों पे हँस को सौ बार वारिए जुज़ मेरे दाल आप की गलती नहीं कहीं यूँ मुँह से जितनी चाहिए शेख़ी बघारिए नाला जो ज़ेर-ए-तेग़ किया मैं ने जिस घड़ी बोले कि एक दम के लिए दम न मारिए तौबा शराब-ए-इश्क़ से किस तरह कीजिए क्यूँकर ये जिन चढ़ा हुआ सर से उतारिए क्या क्या न दोस्त अपने मियान-ए-अदम गए किस को तलाश कीजिए किस को पुकारिए उस बुत के बहर-ए-हुस्न में दिल को डुबोइए इस कश्ती-ए-हयात को यूँ पार उतारिए मंज़ूर हो जो राहत-ए-कौनैन 'मुंतही' हाथों को खीच लीजिए पाँव पसारिए