लहू में घुल घुल के बह रहे थे रगों के अंदर By Ghazal << मिरी बे-क़रारी मिरी आह-ओ-... तिरे निगाह-ए-करम जब बिखर ... >> लहू में घुल घुल के बह रहे थे रगों के अंदर हम अपनी मिट्टी में कुछ रवानी बचा रहे थे उसे ख़बर भी नहीं हम उस शब ख़ामोश रह कर बची हुई है जो इक कहानी बचा रहे थे ये सोच किस दर्जा तिश्नगी से मरे थे हम लोग कि पानी पी नहीं रहे थे पानी बचा रहे थे Share on: