तिरे निगाह-ए-करम जब बिखर गई होगी किसी ग़रीब की दुनिया सँवर गई होगी तुझी को ढूँढती फिरती हैं दर-ब-दर आँखें अज़ल के रोज़ तुझी पर नज़र गई होगी सुकूत-ए-साज़-ए-दो-आलम सुनाई देता है तिरे फ़िराक़ में दुनिया ठहर गई होगी सहर के चाहने वाले का क्या हुआ होगा ब-नाम-ए-तीरा-शबी जब सहर गई होगी वो इक ख़बर कि जो रुस्वाइयों का बाइ'स थी हज़ार रंग में वो इक ख़बर गई होगी सहर के नर्म-ओ-ख़ुनुक दूधिया उजालों में तिरे जमाल की रंगत बिखर गई होगी ये शश-जिहत है तिरे क़ातिलों का देस तो फिर तिरे ख़ुलूस की अर्थी किधर गई होगी