लहू में ख़ाक-ए-शिफ़ा गूँधने की ख़्वाहिश थी मुझे हुसैन से कुछ माँगने की ख़्वाहिश थी वो जिस पिसर के जिगर में उतर गई बर्छी उसी पिसर को जवाँ देखने की ख़्वाहिश थी मिरी तलाश मुझे कर्बला में ले आई मुझे ज़मीं पे ख़ुदा ढूँडने की ख़्वाहिश थी जिन्हों ने लूटा था मौला हुसैन का लाशा उन्हीं सिनाँ से रिदा लूटने की ख़्वाहिश थी मैं दौड़ती रही हर तीर के तआ'क़ुब में मुझे पिदर का गला चूमने की ख़्वाहिश थी ख़ुदा के आख़िरी लश्कर में बस बहत्तर थे ख़ुदा को कर्ब-ओ-बला जीतने की ख़्वाहिश थी मिरे हुसैन मुझे हुर समझ मुआ'फ़ी दे मिरे हुसैन मुझे लौटने की ख़्वाहिश थी बुझा चराग़ तो परखा जुनूँ बहत्तर का जिन्हें लहू से ज़िया बाँटने की ख़्वाहिश थी फ़ुरात मश्क में भर के ख़ियाम तक ग़ाज़ी न लौट पाया मगर लौटने की ख़्वाहिश थी सिनाँ की नोक पे देखो हुसैन ज़िंदा है कटा नहीं है जो सर काटने की ख़्वाहिश थी सलाम अश्क की ख़ुश्बू में ओढ़ कर 'राहिब' दयार-ए-कर्ब-ओ-बला भेजने की ख़्वाहिश थी